4-0 या 1-0 और एक हीरो
चार राज्यों के चुनावी नतीजों की इस आंधी में हर पार्टीे ने कुछ खोया तो कुछ पाया। भाजपा 4-0 का डंका बजा बजा कर खुश होती रही। कांग्रेस के पास किसी भी राज्य से कोई भी खुशखबरी नहीं थी। और एक विस्मयकारी जीत के बाद भी आम आदमी पार्टी के नेता और अब देश के महानायक अरविंद केजरीवाल ने अपने मूल्यों के आधार पर विनम्रता पूर्वक इस जनादेश को जनता को समर्पित कर दिया। अरविंद के माताजी और पिताजी को शत शत नमन।
दिल्ली और देश के पूत के पांव पालने में
मगर दिल्ली में जो हुआ वो अभूतपूर्व है। आम आदमी पार्टी एक आठ नौ महीने के मासूम बच्चे की तरह हर वोटर की गोद में खेलती हुई दिखी। इस छोटे से बच्चे के साथ खेलने के लिये हर आम आदमी और औरत लोलुप दिखा। इस छोटे से निष्कपट बच्चे की सच्चाई ने सबको अपनी ओर आकर्षित किया और आम आदमी पार्टी को 28 सीटों और 31 प्रतिशत वोटों से विजयी बनाया। इसको विजय इसलिये कह रहा हूं क्योंकि इस छोटे से बच्चे ने अपनी धुर विरोधी 50 से 100 साल पुरानी राजनैतिक पार्टियों के शीर्षस्थ नेताओं को निरूत्तर कर के छोड़ दिया। कांग्रेस पार्टी का तो जि़क्र करना भी बेमानी है सिवाय राहुल जी के उस बयान के जहां उन्होंने इस जनादेश को ‘दिल’ से सुनने का दावा किया। मगर दूसरी ओर भाजपा, जिसने ेपदहसम संतहमेज चंतजल बनने का ‘काटों का ताज‘ पहना, वो भी अपनी मात्र तीन सीटों की ‘कष्टदायक‘ बढ़त का जश्न खुल कर न मना पायी।
ये सौतेलापन क्यों?
अस्ल में आम आदमी पार्टी को अपनी पैदाइश के साथ ही सौतेला व्यवहार मिला। किसी नई राजनैतिक पार्टी का एक ‘सच्चाई के आंदोलन‘ की कोख से जन्म लेना, राजनैतिक बिरादरी के आकाओं, पूंजिपतियों और पत्रकारिता जगत के एक वर्ग को खतरे की घंटी सा प्रतीत हुआ। इन सब ने मिल कर आम आदमी पार्टी को एक राजनैतिक विकल्प के तौर पर सिरे से नकार दिया। कहा गया कि ये अभी बच्चे हैं, नाचीज़ हैं, अन्ना के गुनाहगार हैं, नातुजुर्बेकार झूठे लोग हैं, कवि मात्र हैं, और न जाने क्या क्या। मेरे अनुसार शायद ये सब लांछन जिन्होंने लगाये, वे भली भांति समझते थे कि जिस परिवार में आम आदमी पार्टी नामक बच्चे का जन्म हुआ है उसके अभिभावक वर्षों से अपने अपने कार्यक्षेेत्रों में ‘सच्चाई‘ के साथ काम करने के लिये ‘बदनाम‘ हैं। अगर इन विलुप्तप्राय प्रजाति के अभिभावकों ने इस नवजात पार्टी में अपने संस्कार फूंकने में सफलता पा ली तो ये पार्टी आगे चल कर और भी लोगों में इन ‘सच्चाई के संस्कारों‘ का प्रचार प्रसार करेगी और वर्तमान के स्थापित उच्च राजनैतिक मूल्यों को ‘प्रदूषित‘ करेगी।
इस नाचीज़ ने कभी दो चार पंक्तियों की तुकबंदी की कोशिश की थी जिसका उन्वान था ‘जि़ंदगी की नांव‘। उसकी दो चार पंक्तियों के साथ में आम आदमी पार्टी की इस नई पारी के बारे में कुछ कहना चाहता हूं।
जिं़दगी की नाव एक मझधार में अटकी रही,
और बेसबब से मामलों में ये कहीं भटकी रही।
अब यूं लगता है कि जि़म्मेदारियां आने को हैं,
मुश्किलों मजबूरियों में मंजि़लें पाने को हैं।
ख़ैर, पर हर एक विरोध, चरित्र-हरण, लांछन, वार, ‘हत्या‘ का त्वरित और तर्कसंगत जवाब देते हुए भी आम आदमी पार्टी के अभिभावक प्रयत्नशील रहे और आखिरकार समाज के लाड़ले इस छोटे से बच्चे ने उन स्थापित राजनैतिक सत्ताधारियों को वो दिखा दिया जो वो कभी देखना नहीं चाहते थे। ‘‘आइना‘‘!
आम आदमी पार्टी के अभिभावकों की सही लड़ाई तो अब आरंभ हुई है। अब जब उनकी पार्टी को ेजंजम चंतजल प्रमाणित कर दिया गया है तो अब ये नवजात पार्टी घुटनों घुटनों रेंगना छोड़ कर अपने अभिभावकों की उंगली थाम चलने का प्रयास करेगी और अगर समय पर ये उंगली नहीं मिली तो वो किस का हाथ थाम ले इसका भरोसा नहीं। इस बात में भी कोई दो राय नहीं है आठ नौ महीने की इस आम आदमी पार्टी में ‘सूपर चाइल्ड‘ बनने की विलक्षण प्रतिभा है। बस सही मार्गदर्शन और प्रशिक्षण की सख़्त दरकार है। ‘आप‘ के अभिभावकों को फौरी तौर पर अपने सभी प्रत्याशियों को, भले वो जीते होें या हरवा दिये गये हों, को लामबंद, अनुशासित और सर्वोेपरी प्रशिक्षित करना होगा। ये मैं इस लिये कह रहा हूं कि धर्मंेद्र कोली के उपर हाल ही में लगे आरोपों से और कुछ भी सामने आया हो या नहीं पर पार्टी में अनुशासनहीनता ज़रूर उजागर हुई है। कोली पर लगे इल्जा़म पर इस बार मीडिया ने स्वेच्छा से दोनों पक्षों को एक ही सांस में समान जगह दी। और मेरे अनूसार कोई भी समझदार तर्कसंगत इंसान कोली पर लगे इल्ज़ामों को मानने से हिचकेगा। इस विषय पे तो शायद कांग्रेस के उपाध्यक्ष को भी गंभीर आत्मचिंतन की ज़रूरत है। शहज़ादे की उपाधी प्राप्त राहुल को सही में ये सोचना चाहिये कि क्या इस ही किस्म की राजनीति ने ही उनकी दादी जी और ख़ासकर उनके पिताजी को देश का प्रधानमंत्री बनाया था? मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब मैं आठवीं या नौवीं में था तब छत्तीसगढ़, तब के मध्यप्रदेश, के एक छोटे से शहर में आपके पिताजी की टीवी पर अंत्येष्ठी देख कर मेरी मां की आखों में आंसू थे। मेरी पढ़ी लिखी मां का किसी भी राजनैतिक गतिविधि से कभी भी कोई सरोकार नहीं था। राहुल जी आपमें और अरविंद में बस ये फर्क है की केजरीवाल ने अपना वायूयान खुद बनाया और अब उसे पायलेट कर रहे हैं वहीं आपको एक एैसे वायूयान को पायलेट करना है जो पहले से ही अपनी उड़ान पे है। आप जानते हैं कि क्या ज़्यादा कठिन है।
विकास ठाकुर
Comments
Post a Comment